Friday, April 2, 2021

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क्या फ़र्क पड़ता है कि मैं तुम्हारी खुशियों में शामिल हो न सका..क्या फ़र्क पड़ता है कि जिस रोज़ तुम्हारी हँसी घर मे ऐसे गूंज रही थी जैसे किसी जीत के बाद किया जाने वाला शंखनाद हो, और उस रोज़ भी मैं तुम्हारे साथ नहीं था..क्या फ़र्क पड़ता है कि मैंने तुम्हें तब नहीं देखा जब तुमने आईने के सामने खड़े होकर काजल अपनी आंखों में ऐसे लगाया जैसे बड़े से समुंदर को बांध दिया हो किसी ने एक छोटी सी मेढ़ के सहारे..क्या फ़र्क पड़ता है कि मैं तब तुम्हारे साथ नहीं था जब तुमने रंगोली सयाजी अपने आँगन में ऐसे जैसे आसमान में इंद्रधनुष निकल कर आया हो..क्या फ़र्क पड़ता है कि मैं तब नहीं था जब तुमने हाथों में चूड़ियां पहनी, माथे पर बिंदी सजाई, बालों में गजरा लगाया, होंठो पर लिपस्टिक, चेहरे पर फाउंडेशन, गले मे तुमने वो सोने का हार पहना, तुमने नथ पहनी, और कमर पर कस लिया करदोने को ऐसे जैसे सारी क़ायनात बांध दी हो एक धागे से..मैंने तो ये भी सुना है कि उस रोज तुम सबसे खूबसूरत लग रहीं थी..पर क्या फ़र्क पड़ता है इससे की मैं तब तुम्हारे साथ नहीं था..

जब मैं तुमसे मिला था तब से ही मैं जानता था कि मैं शायद तुम्हारी खुशियों में हर बार शामिल हो न सकूँ.. ज़िंदगी की भागदौड़ में मेरा तुम्हारे साथ हर पल रहना नामुमकिन था, तो मैंने तब ही तुमसे वादा किया, की मैं तुम्हारे हर एक गम को समेट लूँगा, तुम्हारे हर दुःख में मैं तुम्हारे पास रहूँगा, जब तुम्हें लगेगा कि तुम अकेली पड़ रही हो, मैं पीछे से आकर तुम्हारा हाथ थाम लूँगा, मैं शायद न देख सकूँ की तुम्हारी आँखों मे लगा काजल कितना खूबसूरत है, पर जब कभी तुम्हारा यही काजल तुम्हारी आँखों मे फैलने की कोशिश करेगा मैं, अपनी उंगलियों से उसे ठीक करने मौजूद रहूँगा तुम्हारे साथ..

जब तुम्हें लगेगा कि ये दुःख तुम्हारे कंधों पर बैताल की तरह लदे पड़ रहे हैं मैं तब तुम्हारे साथ रहूँगा, जब तुम्हें लगेगा कि तुम्हें बहुत कुछ है जो कहना है, ज़ोर से नहीं धीरे से ताकी कोई और न जान सके तुम्हारी घरेलू समस्याओं को, तो मैं हर उस वक़्त में तुम्हें सुनने को अपने कान लेकर तुम्हारे होंठो के ठीक पास रहूँगा..जब सारा श्रृंगार बिखर चुका होगा, जब तुम बेसुधी में अपने कमरे के दरवाजे बंद कर बिस्तर में बैठ कर रोने लगोगी, मैं तुम्हारे कमरे की दूसरी खिड़की से भीतर आ जाऊंगा और तुम्हारे सिर को अपनी गोद में रखकर घंटो इंतज़ार करूँगा, उस एक मुस्कुराहट का जो दिनभर से कहीं घने अंधेरे में खो चुकी है..

मैं हर उस वक़्त तुम्हारे साथ रहूँगा जब तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत रहेगी, वरना क्या फ़र्क पड़ता है कि तुम ख़ुश हो, तुम्हारे आस पास हज़ारों लोग हों, उस वक़्त मेरी मौजूदगी उतनी मायने नहीं रखती है.. हाँ पर मेरी मौजूदगी हर उस क्षण में होगी जब तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत होगी..❤️❤️❤️